Tuesday, 24 September 2013

कुछ और है...

बहुत कश्काश भरी है ज़िन्दगी की राहें
  दौड़ता कोई और है और थकता कोई और है...

कुछ यु उलझे  है अरमानो के रिश्ते
  पुकारते किसी और को है सुनता कोई और है...

बढ जाते है फासले दिलो के
  जब कोई कहता कुछ और है और कोई समझता  कुछ  और है...

इस कदर बदला है हवा ने रुख अपना
  आग लगती कही और है और धुआ उठता कही और है...

लौट आता है बारिशो का मौसम 
  जब रोता कोई और है और भीगता कोई और है...

मुश्किल सी हो जाती है अक्सर 
  जब मन चाहता कुछ और है और दिल करता कुछ और है...

हकीकत की दुनिया से वाकिफ  है सब यहाँ 
  जहा दीखता कुछ और है और होता कुछ और है......!!!





1 comment:

  1. haal jaan lo apna or humara bhi
    yaha ruthta kon h manata koi or hai

    ReplyDelete